एस.जी.टी.बी खालसा कॉलेज ने किया भारतीय डायसपोरा पर अल्पकालिक कोर्स का शुभारम्भ
दिनांक 09 अप्रैल 2025 को प्रवासी भवन (नई दिल्ली) में अंतर राष्ट्रीय सहयोग परिषद (ए.आर.एस.पी), डायसपोरा अनुसंधान एवं संसाधन केंद्र (डी.आर.आर.सी) एवं विदेश मंत्रालय, भारत सरकार के एक महत्वपूर्ण शैक्षणिक सहयोग से एस.जी.टी.बी खालसा कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा ‘भारतीय डायसपोरा: अंतर्विषयक परिप्रेक्ष्य’ पर 30 घंटे के अल्पकालिक कोर्स के प्रक्षेपण हेतु उद्घाटन सत्र का आयोजन हुआ ।
कार्यक्रम की शुरुआत प्रो. जसविंदर कौर बिंद्रा ने अपने गर्मजोशी भरे स्वागत से की जिसके उपरांत एस.जी.टी.बी खालसा कॉलेज के उप प्राचार्य प्रो. हरबंस सिंह ने स्वागत वक्तव्य दिया। प्रो. हरबंस सिंह ने गणमान्य व्यक्तियों, संकाय सदस्यों एवं छात्र स्वयंसेवकों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया तथा दुनिया भर में प्रवासी समुदायों के बीच भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की सुदृढ़ स्थिति को बनाए रखने पर बल दिया। प्राचार्य प्रो. गुरमोहिंदर सिंह की ओर से उन्होंने सहयोगी संस्थानों को विशेष धन्यवाद दिया।कार्यक्रम की मुख्य अतिथि मॉरीशस की प्रवासी भारतीय सम्मान विजेता डॉ. सरिता बूधू सहित गणमान्य अतिथियों सुनैना मोहन (उच्चायुक्त, सूरीनाम, नई दिल्ली), त्रिनिदाद और टोबैगो गणराज्य से क्रिस रामपरसाद और उज़्बेकिस्तान से अशोक तिवारी का स्वागत किया गया।
ए.आर.एस.पी के श्री गोपाल अरोड़ा ने पाठ्यक्रम की शुरुआत की जिसके अंतर्गत इतिहास, साहित्य, भोजन, कला और बॉलीवुड जैसे विषयों को शामिल करते हुए प्रवासी अध्ययन के लिए इसके बहुआयामी दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला गया। ए.आर.एस.पी के अध्यक्ष माननीय विनोद कुमार ने प्रवासी समुदाय के आर्थिक योगदान पर बात रखते हुए सभी की संगठित पहल को सराहा व हार्दिक आभार प्रकट किया।
महामहिम सुनैना मोहन ने सूरीनाम में भारतीय डायसपोरा की विशिष्टता को रेखांकित करते हुए भाषा, भूषा, भजन, भोजन, भूतकाल, भावना सहित बॉलीवुड को सांस्कृतिक गठजोड़ का अहम बिंदु बताया। क्रिस रामपरसाद ने भाषा के नुक़सान के बीच संस्कृति के संरक्षण पर अपने विचार रखे। कैलिफोर्निया के प्रो. तेजमान सिंह ने ऑनलाइन जुड़कर प्रवासी पहचान संकट और प्रवासी समुदायों द्वारा सामना किए जाने वाले सांस्कृतिक द्वंद्वों पर अपनी अंतर्दृष्टि साझा की। उद्यमी अशोक तिवारी ने शुरुआती कठिनाइयों पर क़ाबू पाने की अपनी यात्रा और विदेशों में सामुदायिक संबंधों को बढ़ावा देने में भारतीय त्योहारों की अहम भूमिका के बारे में बताया।डॉ. सरिता बुधू ने अपने प्रेरक संबोधन में मॉरीशस में भोजपुरी संस्कृति को संरक्षित करने की अपनी यात्रा साझा की और छात्रों को प्रवासी अध्ययनों में गहन शोध करने के लिए प्रोत्साहित किया। कार्यक्रम का समापन माननीय सुशील कुमार सिंघल के भाषण के साथ हुआ जिसके बाद पाठ्यक्रम समन्वयक सुश्री गुरनीत कौर ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का समापन जलपान के दौरान प्रतिभागियों और मेहमानों के बीच परस्पर संवाद के एक सुखद माहौल में हुआ।