हम विद्यार्थियों के साथ धोखा नहीं कर सकते हैं : दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ

हम विद्यार्थियों के साथ धोखा नहीं कर सकते हैं : दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ 

              


दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने राष्ट्रपति को सौंपा ज्ञापन सौंपा 

 नई दिल्ली : दिल्ली विश्वविद्यालय में  1 अगस्त से नया सत्र शुरू होना है लेकिन कॉलेज संसाधनों संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। संसाधनों की कमी के मुद्दे को लेकर सोमवार को दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में एक प्रेसवार्ता कर छात्रों के साथ शिक्षकों के मुद्दों को भी गंभीरता से उठाया। प्रेसवार्ता को सम्बोधित करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. ए.के भागी ने कहा कि हम चौथे वर्ष में प्रवेश कर रहें हैं. कॉलेजों में पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। चौथे वर्ष के छात्रों के साथ हम धोखा नहीं कर सकते हैं। कई कॉलेजों में कमरे, शिक्षक, लैब का घोर अभाव है।पिछले दिनों कालिंदी और जीसस एंड मेरी कॉलेज में पंखा गिरने की घटना भी देखने को मिली थीं. हलांकि उन्होने इन घटनाओ का जिक्र नहीं किया लेकिन उन्होंने कहा कि कोई भी नीति आ आ जाए जब छात्रों के लिए बुनियादी सुविधा नहीं होगी तो क्या पढ़ाई करेंगे। 

                 

             स्वयं और मूक्स हमें मंजूर नहीं : डूटा

दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन  स्वयं और मूक्स जैसे ऑनलाइन प्लेटफार्म का प्रयोग छात्रों के पढ़ाई के लिए करना चाहता है लेकिन एक स्वर में हम इसका विरोध करते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि डीयू ने इससे जुड़े फैसले खुद लिए शिक्षक को इस बारे में कुछ पता नहीं है। किसी तरह का फीडबैक नहीं लिया गया। हम चौथे साल के छात्रों के लिए किसी भी बैच की कुर्बानी नही कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि डीयू में ओबीसी एक्सपेंशन  के बाद बढ़ी हुई सीटें काफी बाद में मिली लेकिन ईडब्ल्यूएस के तहत छात्रों की संख्या बढ़ाई गई लेकिन विश्वविद्यालय के कॉलेजों में उसके अनुसार शिक्षकों, लैब, पुस्तकालय, स्पोर्ट्स सुविधा आदि नहीं बढ़ाई गई इससे छात्रों पर पढ़ाई की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। प्रो. भागी ने कहा कि  दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ शिक्षकों के हित अहित को अच्छी तरह समझता है. हम शिक्षकों के अधिकारों की रक्षा करना बखूबी जानते हैं. अकादमिक गरिमा, संस्थागत समानता के प्रति हम कल भी प्रतिबद्ध थे और हमेशा रहेंगे.   सोमवार को भारत की राष्ट्रपति (जो दिल्ली विश्वविद्यालय की विजिटर भी हैं) को एक विस्तृत ज्ञापन शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के माध्यम से सौंपा. 

                      

 

         फ़ाइल फोटो : दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ

यूजीसी ड्राफ्ट रेगुलेशन 2025 को पीआरसी रिपोर्ट के अभाव में वापस लेने तथा शिक्षकों की लंबे समय से लंबित शैक्षणिक और सेवा-संबंधी समस्याओं के समाधान की मांग भी की गई है। इस ज्ञापन को दिल्ली विश्वविद्यालय के करीब 2000 शिक्षकों ने अपना समर्थन दिया है। डूटा के उपाध्यक्ष सुधांशु कुमार ने पुस्तकालयाध्यक्षों, शारीरिक शिक्षा निदेशकों और प्रशिक्षकों सहित सभी शैक्षणिक भूमिकाओं के लिए सेवा शर्तों, सेवानिवृत्ति आयु और पदोन्नति के अवसरों में समानता की मांग की।सुधांशु कुमार  ने नॉट फाउंड सुटेबल (एनएफएस) प्रावधान के अनुचित प्रयोग की कड़े शब्दों में  निंदा करते हुए कहा कि यह एनएफएस जैसे निर्णय आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के हितों को नुकसान पहुंचाता है। डूटा ने विश्वविद्यालय प्रशासन से यूजीसी की स्क्रीनिंग मानदंडों का सरख्ती से पालन अभियान चलाने की मांग की। डुटा के सचिव अनिल कुमार ने कहा कि यूजीसी के मसौदा विनियम, 2025 हमें वर्तमान स्वरुप में मंजूर नहीं है और  वर्तमान स्वरूप में इसको लागू नहीं किया जाना चाहिए और बिना वेतन आयोग 8 वें वेतन आयोग के प्रावधानो से जोड़े वगैर हम इसे शिक्षकों के हित में नहीं मानते हैं.

 सहायक प्रोफेसर पद के लिए आवेदन शुल्क बढ़ाये जाने का विरोध 

दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ की कोषाध्यक्ष आकांक्षा खुराना ने दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा मनमाने ढंग से आवेदन शुल्क को 500 रूपए से 2000 रुपये किये जाने का विरोध किया.उन्होंने कहा कि बिना आधारभूत ढांचे के विकास, वित्तीय संसाधनों और फीडबैक व्यवस्था के की जा रही नीतिगत पहलें सार्वजनिक विश्वविद्यालयों की स्थिरता को खतरे में डाल रही हैं और एनईपी के घोषित उद्देश्यों को असफल बना रही हैं। 

लगातार हो रही शिक्षकों के हितों की अनदेखीः प्रो. आदित्य नारायण मिश्रा 

                       

एकेडमिक फार एक्शन एंड डेवलेपमेंट के राष्ट्रीय संयोजक और डूटा भूतपूर्व अध्यक्ष प्रो. आदित्य नारायण मिश्रा ने कहा कि सरकार लगातार शिक्षकों के हितों की अनदेखी कर रही है। जिस तरह से नियम शिक्षकों व छात्रों पर लादे जा रहे हैं वह  सीधे तौर शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है। यह किस तरह का राष्ट्र निर्माण है। जहां लगातार छात्रों की संख्या में वृद्धि हो रही है लेकिन थ्योरी और प्रैक्टिकल के समय में कटौती की जा रही. पास्ट सर्विस काउंट नहीं किया जा रहा है। सीसीएस के माध्यम से उनको निर्धारित अवधि से पहले ही बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी की जा रही है। नई पेंशन योजना का लाभ भी शिक्षक की मृत्यु के बाद उसके परिवार को नहीं मिल रहा है. कॉलेज आर्थिक दिक्कतों से जूझ रहे हैं उनके यहां मेंटिनेंस ग्रांट नहीं आ रही है। अंततः संसाधन की कमी को लेकर तमाम आर्थिक बोझ छात्रों पर डालने की तैयारी हो रही है। 

स्टेक होल्डर्स के से कोई लेना देना नहीं.सिर्फ निर्णय थोप रहा है डीयू नहीं की कोई चर्चा: प्रो. रुद्राशीष चक्रबर्ती

                 


डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट के पदाधिकारी प्रो. रुद्राशीष चक्रबर्ती ने कहा कि स्टेक होल्डर्स के से कोई लेना देना नहीं बस डीयू निर्णय थोप रहा है। फरमान सुनाने से पहले शिक्षकों से किसी तरह की चर्चा नहीं की जा रही है। यही नहीं डीयू के चौथे वर्ष के छात्रों को भी इसमें पढ़ाए जाने वाले कोर्स, वोकेशनल कोर्स, जनरल इलेक्टिव के बारे में नहीं पता है। इस तरह के कार्य से शैक्षणिक गुणवत्ता नीचे जाती है। आप देख सकते हैं कि उन उन प्रयोगों को चौथे वर्ष के प्रस्तावित किया गया है जिसका उपकरण ही नहीं है।

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