मनुष्य को मनुष्य बनाने का काम करता है रस: प्रो. योगेश सिंह

दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा डॉ. नागेंद्र स्मृति व्याख्यानमाला आयोजित 

                                   


रस के बिना अधूरा है साहित्य का अस्तित्व: नंदकिशोर आचार्य 

दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि रस मनुष्य को मनुष्य बनाने का काम करता है। जीवन से रस निकल जाए तो मनुष्य पर ऐसा प्रभाव होता है जैसे मिट्टी से पानी निकाल देने पर वह रेत हो जाती है। प्रो. योगेश सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा डॉ. नगेन्द्र व्याख्यानमाला के अंतर्गत आयोजित दो दिवसीय व्याख्यान के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध साहित्यकार नंदकिशोर आचार्य बतौर मुख्य वक्ता एवं डीन ऑफ कॉलेजेज़ प्रो. बलराम पाणी व डीयू सांस्कृतिक परिषद के चेयरपर्सन अनूप लाठर बतौर विशिष्ट अतिथि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का आयोजन कला संकाय स्थित सत्यकाम भवन के संगोष्ठी कक्ष में किया गया। 

                      


कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि साहित्य का उद्देश्य केवल मनोरंजन भर नहीं है, बल्कि वह समाज को नई दिशा देने वाला साधन है। रस की अवधारणा इस प्रक्रिया में केंद्रीय भूमिका निभाती है। यह व्यक्ति के भीतर संवेदनाओं का ऐसा संसार निर्मित करती है, जो धीरे-धीरे पूरे समाज के लिए प्रेरक बन सकता है। उन्होंने कहा कि साहित्य तभी सार्थक है जब वह समाज को संतुलित और सामंजस्यपूर्ण बनाने की दिशा में योगदान दे। उन्होंने मैथिलीशरण गुप्त की कविता “भरा नहीं जो भावों से बहती जिसमें रसधार नहीं…. हृदया नहीं वह पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं” के साथ राष्ट्रप्रेम पर ज़ोर देते हुए कहा कि राष्ट्रप्रेम भी एक रस है, अगर राष्ट्र प्रेम नहीं होता तो देश में इतनी बड़ी क्रांतियां न होती। कुलपति ने कहा कि हमारे अंदर “ये देश है मेरा” के भाव की सबसे ज्यादा आवश्यकता है। भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है और ऐसे में देश के सामने नई चुनौतियाँ होंगी। देश से गरीबी और अशिक्षा को दूर करना है तथा शिक्षा ही इसका सटीक उपकरण है। इस दौरान कुलपति ने ‘हिंदी’ पर चर्चा करते हुए कहा कि हिंदी जन-जन की भाषा है, मन की भाषा है, भारत की भाषा है और भारत के गौरव की भाषा है। हिंदी से जुड़े लोगों को इसे और समृद्ध करना है। 

                       


कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में सुप्रसिद्ध कवि, चिंतक और आलोचक नंदकिशोर आचार्य ने मुख्य वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि रस भारतीय काव्यशास्त्र की आत्मा है और साहित्य का अस्तित्व रस के बिना अधूरा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि साहित्य का उद्देश्य हमें भीतर से बदलना है और यह तभी संभव है जब वह हमें संवेदनाओं की गहराई तक ले जाकर रस की अनुभूति कराए। उन्होंने बताया कि साहित्य का उद्देश्य भीतर से परिवर्तन लाना है, जो रस–अनुभूति के बिना संभव नहीं। डीयू के हिंदी विभाग की अध्यक्ष प्रो. सुधा सिंह ने कार्यक्रम और अतिथियों का परिचय करवाते हुए कहा कि यह व्याख्यानमाला डॉ. नगेंद्र के वैचारिक योगदान के पुनर्पाठ का अवसर है और भारतीय काव्यशास्त्र की परंपरा आज भी उतनी ही प्रेरणादायक है जितनी कभी थी। उन्होंने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया और कहा कि आयोजन न केवल शैक्षणिक विमर्श का मंच रहा, बल्कि साहित्य और संस्कृति की भविष्य दृष्टि को दिशा देने वाला एक महत्वपूर्ण अवसर भी सिद्ध हुआ। व्याख्यान ने यह संदेश दिया कि साहित्य केवल शब्दों की सजावट नहीं, बल्कि संवेदना और अनुभवों की ऐसी दुनिया है, जो व्यक्ति और समाज दोनों को भीतर से बदलने की क्षमता रखती है।

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