डीयू ने तय किया कि हम इकबाल को नहीं पढ़ाएंगे: कुलपति प्रो. योगेश सिंह
अगर सारा पंजाब पाकिस्तान में होता तो गुरुग्राम में होता बार्डर: सरदार तरलोचन सिंह
नई दिल्ली, 14 अगस्त।
दिल्ली विश्वविद्यालय के स्वतंत्रता एवं विभाजन अध्ययन केंद्र (सीआईपीएस) द्वारा गुरुवार, 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाया गया। इस अवसर पर “विभाजन की कहानियाँ: आघात से गवाही तक” विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन भी किया गया। कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए डीयू कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि इकबाल ने “सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा ... ” लिखा तो लेकिन उसने खुद इसे नहीं माना। उसने तो 1910 में “तराना-ए-मिल्ली” लिखा जिसमें कहा कि “मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहां हमारा...” इकबाल की भारत विरोधी सोच पर डीयू ने तय किया है कि हम इकबाल को अपने यहाँ नहीं पढ़ाएंगे। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के तौर पर पूर्व सांसद एवं राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष, सरदार तरलोचन सिंह ने विभाजन के दौर पर प्रकाश डाले हुए अपने संबोधन में कहा कि पंजाब के सिखों ने चाहा था कि हम पाकिस्तान के साथ नहीं जाएंगे, अगर सारा पंजाब पाकिस्तान के साथ जाता तो पाकिस्तान का बॉर्डर गुरुग्राम होता।
कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने अपने संबोधन में ने कहा कि विभाजन में लाखों लोग मारे गए, लेकिन कोई लिस्ट नहीं बनी। ये हुआ क्यों? इतनी बड़ी घटना के लिए किसी को ज़िम्मेवार भी नहीं ठहराया गया। इस विषय पर कुछ फिल्में, कुछ कविताएं तो लिखी गई, लेकिन इस मुद्दे पर गंभीरता से कोई फिल्म नहीं बनी। कुलपति ने कहा कि जो हुआ क्यों हुआ और आगे नहीं होगा इसकी क्या गारंटी है? क्या हमारी कोई तैयारी है? इस पर भारत के लोगों को विचार करने की जरूरत है। प्रो. योगेश सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र का आभार जताते हुए कहा कि उन्होंने 14 अगस्त 2021 से प्रतिवर्ष विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि साल में कम से कम एक बार 14 अगस्त के दिन इस विषय पर चर्चा होगी तो सोया हुआ भारत उठेगा। अगर हमें सोने की आदत न होती तो भारत 800 साल गुलाम न रहता। कुलपति ने कहा कि 14 अगस्त का दिन इन बातों को मनन करने का दिन है।
पूर्व सांसद सरदार तरलोचन सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि विभाजन में जो लाखों लोग मारे गए, उनका कसूर क्या था? वह तो अपने वतन के लिए और अपने धर्म के लोए कुर्बान हुए। आज किसी को एक झोंपड़ी से निकाला आसान नहीं है, जबकि उस दौर में लोगों ने भारत के लिए अपने गाँव और घरों को छोड़ा। उन्होंने कहा कि वहाँ से जो व्यापारी लोग आए थे उन्हें कोई उचित सरकारी मदद नहीं मिली थी और फड़ी पर बैठ कर व्यापार किया। उसके बावजूद उन लोगों ने मेहनत से अपने कारोबार खड़े किए और सरदार मनमोहन सिंह व इंद्र कुमार गुजराल के रूप में देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे। डीयू के डीन ऑफ कॉलेजेज़ प्रो. बलराम पाणी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत विभाजन कोई प्रॉपर्टी का बंटवारा नहीं था, अपितु यह तो हमारी मातृभूमि का बंटवारा था; हमारी सामाजिक व्यवस्था और संस्कृति का बंटवारा था। इससे उपजे दर्द को आसानी से नहीं भुलाया जा सकता।
स्वतंत्रता एवं विभाजन अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. रविंदर कुमार ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि भारत विभाजन और आजादी के 75 साल तक यह बताने की कोशिश नहीं की गई कि ये बंटवारे की गलती किसकी थी और क्यों हुई। इसलिए उन गलतियों को याद करने हेतु यह आयोजन किया जाता है, ताकि आगे ऐसी गलती न हो। सीआईपीएस के चेयरपर्सन प्रो. रवि प्रकाश टेकचंदानी ने विस्थापन के दर्द को बहुत ही मार्मिक तरीके से पेश किया। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने कभी भारत को अपनाया नहीं, जबकि उनसे पहले हूण और कुषाण आदि जो भी आए वो यहीं के होकर रह गए। अंग्रेजों ने इस देश को भोगा, शोषण किया और तोड़ा। 1947 में हम उनके शोषण से मुक्त हुए। कार्यक्रम के दौरान सीआईपीएस की वार्षिक रिपोर्ट का विमोचन भी किया गया। उद्घाटन सत्र के दौरान डीन ऑफ कॉलेजेज़ प्रो. बलराम पाणी द्वारा अनेकों विभाजन पीड़ितों को सम्मानित भी किया गया। इस अवसर पर दक्षिणी परिसर की निदेशक प्रो. रजनी अब्बी, एसओएल की निदेशक प्रो. पायल मागो, रजिस्ट्रार डॉ विकास गुप्ता मुख्य रूप से उपस्थित रहे।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे चरण में शैक्षणिक सत्र का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य वक्ता पूर्व सांसद एवं राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष सरदार तरलोचन सिंह रहे जबकि साउथ कैंपस की निदेशक प्रो. रजनी अब्बी बतौर विशिष्ट अतिथि उपस्थित रही। प्रो. रजनी अब्बी ने विभाजन से जुड़ी घटनाओं का जिक्र करते हुए इस कार्यक्रम की सार्थकता बताई। दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए डीयू संस्कृति परिषद के चेयरपर्सन अनूप लाठर ने अपने संबोधन में कहा युवाओं के लिए यह बात समझना बहुत जरूरी है कि जो चोट हड्डी पर लगती है वो ताउम्र टीस देती है; और ये वाली चोट तो दिल की चोट है। कार्यक्रम के समापन समारोह में मुख्य वक्ता के तौर पर आरएसएस के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने विभाजन विभीषिका पर अपने विचार प्रस्तुत किए। इस अवसर पर विभाजन पीड़ितों ने अपने अनुभव भी साझा किए।