न्यू मीडिया में हिंदी सामग्री में हो रही उल्लेखनीय प्रगति

 

न्यू मीडिया में हिंदी सामग्री में हो रही उल्लेखनीय प्रगति


            

डॉशैलेश शुक्ला

वैश्विक प्रधान संपादक

सृजन संसार अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समूह

आशियाना, लखनऊ, उत्तर प्रदेश

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नवीन संचार तकनीकों की क्रांति ने जिस प्रकार से वैश्विक स्तर पर संवाद और अभिव्यक्ति के स्वरूप को परिवर्तित किया हैउसी परिवर्तन ने भारत जैसे बहुभाषिक देश की प्रमुख भाषा हिंदी को भी एक नई पहचान और नई शक्ति दी है। पहले जहाँ हिंदी को पारंपरिक मीडिया  जैसे रेडियोदूरदर्शन और प्रिंट पत्रकारिता तक सीमित देखा जाता थावहीं आज न्यू मीडिया ने इसे बहुआयामी और वैश्विक मंच प्रदान किया है। हिंदी भाषा अब केवल साहित्यिक या प्रशासनिक सीमाओं में सिमटी नहीं रह गईबल्कि उसने फेसबुकट्विटरयूट्यूबइंस्टाग्रामब्लॉगिंगपॉडकास्टओटीटीऑनलाइन शिक्षावेब पत्रकारिता और डिजिटल मार्केटिंग जैसे सभी प्रमुख न्यू मीडिया प्लेटफार्मों पर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की है। इस लेख में हम हिंदी की डिजिटल यात्रा की इस उल्लेखनीय प्रगति का बहुआयामी मूल्यांकन करेंगे।

                          


न्यू मीडिया का सबसे प्रभावशाली पक्ष यह है कि यह विकेंद्रीकृत हैजन-सुलभ है और पारंपरिक नियंत्रणों से मुक्त है। यही कारण है कि हिंदी भाषाजो लंबे समय तक शहरी अभिजात्य मीडिया में हाशिये पर थीन्यू मीडिया के मंच पर केंद्र में  गई है। आज एक साधारण ग्रामीण व्यक्ति भी अपने मोबाइल फोन से यूट्यूब चैनल बना सकता हैब्लॉग लिख सकता है या फेसबुक पोस्ट के माध्यम से अपने विचारों को लाखों लोगों तक पहुँचा सकता है  और वह भी अपनी मातृभाषा हिंदी में। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यूट्यूब पर मौजूद हजारों हिंदी चैनल हैंजिनमें कृषि से लेकर राजनीतिशिक्षण से लेकर हास्यखाना बनाने से लेकर टेक्नोलॉजी तक हर क्षेत्र की सामग्री हिंदी में बनाई जा रही है और करोड़ों दर्शकों तक पहुँच रही है। यही नहींहिंदी चैनल अब अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के बीच भी लोकप्रिय हो रहे हैंजिससे यह स्पष्ट होता है कि न्यू मीडिया ने हिंदी को सीमाओं से परे पहुँचाया है।

यह प्रगति मात्र तकनीकी सुविधा का परिणाम नहीं हैबल्कि एक सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन की द्योतक है। डिजिटल युग ने लोगों की यह धारणा तोड़ दी है कि ज्ञानसंवाद और नवाचार केवल अंग्रेज़ी भाषा के दायरे में ही संभव हैं। न्यू मीडिया ने हिंदी को विचार और विमर्श की भाषा बना दिया है। हिंदी में  केवल मनोरंजन की सामग्री बन रही हैबल्कि गंभीर राजनीतिक विश्लेषणसाहित्यिक आलोचनावैज्ञानिक संवादपर्यावरणीय विमर्श और स्त्रीवादी विचार भी डिजिटल रूप से अभिव्यक्त किए जा रहे हैं। उदाहरणस्वरूप, ‘दी लल्लनटॉप जैसे डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म ने हिंदी पत्रकारिता को एक नई ऊर्जा और शैली प्रदान की है। वहीं, ‘ क्विंट हिंदी, ‘गाँव कनेक्शन, ‘हिंद किसान, ‘जनचौक आदि पोर्टल्स ने हिंदी में डिजिटल पत्रकारिता को विश्वसनीयता और विस्तार प्रदान किया है।

इसके अतिरिक्तसोशल मीडिया ने हिंदी की रचनात्मकता को अभूतपूर्व मंच दिया है। फेसबुक पर रोज़ाना हजारों हिंदी कविताएँकहानियाँसंस्मरण और विचार प्रकाशित होते हैं। ट्विटर पर #हिंदीकविता या #हिंदीशायरी जैसे ट्रेंड बतलाते हैं कि हिंदी साहित्य अब केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं रहाबल्कि डिजिटल संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। वहींइंस्टाग्राम और रील्स जैसे विजुअल माध्यमों पर भी हिंदी की लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। वहाँ युवा पीढ़ी हिंदी के मिश्रण से नया शहरी-सांस्कृतिक रूप गढ़ रही हैजो  केवल भाषा के प्रति अपनत्व को दिखाता हैबल्कि उसकी सृजनात्मक उर्वरता को भी सिद्ध करता है।

हिंदी की यह प्रगति डिजिटल शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय है। COVID-19 महामारी के बाद जब पूरा विश्व ऑनलाइन शिक्षण की ओर मुड़ातब हिंदी में गुणवत्तापूर्ण शैक्षणिक सामग्री की भारी माँग उत्पन्न हुई। इस आवश्यकता ने हजारों हिंदी यूट्यूब एजुकेटर को जन्म दिया  जो प्रतियोगी परीक्षाओं से लेकर तकनीकी विषयों और भाषा प्रशिक्षण तक को हिंदी में सिखा रहे हैं। उदाहरण के लिए, ‘Study IQ Hindi’, ‘Wifistudy’, ‘Unacademy Hindi’, ‘Physics Wallah’ जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स ने हिंदी माध्यम के छात्रों को डिजिटल माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने का सशक्त साधन दिया है। यह परिवर्तन  केवल भाषाई न्याय का संकेत हैबल्कि डिजिटल साक्षरता के समावेशी स्वरूप का भी परिचायक है।

साहित्यिक दृष्टि से भी यह काल हिंदी के लिए अत्यंत उर्वर सिद्ध हो रहा है। ब्लॉगिंग-पत्रिकाएँ-बुक्स और पॉडकास्ट ने हिंदी साहित्य को नए पाठकों और श्रोताओं से जोड़ा है। हिंदवी, ‘प्रतिलिपि, ‘कविता कोश, ‘गद्य कोश, ‘रेख्ता आदि पोर्टल्स और एप्प्स पर लाखों पाठक हिंदी साहित्यिक सामग्री पढ़ते हैं। ऑडियोबुक प्लेटफ़ॉर्म जैसे कि Storytel’, ‘Kuku FM’ और Pocket FM’ ने हिंदी साहित्यिक धरोहर को आवाज़ दी हैजिससे प्रेमचंदअज्ञेयरेणुशिवानी जैसे लेखकों की कहानियाँ पुनः जीवंत हो रही हैं। साथ हीनए लेखक भी डिजिटल रूप से प्रकाशित हो रहे हैंजिनकी रचनाएँ अब प्रिंट में आए बिना ही लोकप्रियता हासिल कर रही हैं।

हालाँकियह प्रगति कुछ चुनौतियों के साथ भी आती है। हिंदी सामग्री की गुणवत्तातथ्यात्मक सटीकताभाषा शुद्धता और व्याकरणिक अनुशासन की कमी अनेक बार देखने को मिलती है। इसके अतिरिक्तहिंदी कंटेंट को व्यावसायिक रूप से लाभकारी बनाने में अभी भी कई बाधाएँ हैं। अधिकांश विज्ञापन एजेंसियाँ अभी भी अंग्रेज़ी को प्राथमिकता देती हैं। न्यू मीडिया एल्गोरिद्म्स भी अंग्रेज़ी सामग्री को अधिक प्रोमोट करते हैं। हिंदी सामग्री निर्माताओं को तकनीकी टूल्स की सीमाओंअनुवाद की कठिनाइयों और डिज़िटल संसाधनों की अनुपलब्धता का सामना करना पड़ता है।

इन समस्याओं के समाधान हेतु सरकारतकनीकी कंपनियोंविश्वविद्यालयों और स्वतंत्र शोध संस्थाओं को मिलकर प्रयास करना चाहिए। एक हिंदी डिजिटल सामग्री आयोग की स्थापना की जानी चाहिएजो गुणवत्ताभाषा नीति और आर्थिक समर्थन पर कार्य करे। हिंदी को डिजिटल एआई और मशीन ट्रांसलेशन में शामिल करने के लिए विशेष प्रोग्राम विकसित किए जाने चाहिए। साथ हीग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में डिजिटल हिंदी साक्षरता अभियान चलाया जाना चाहिएताकि अधिकाधिक लोग हिंदी के माध्यम से न्यू मीडिया का लाभ ले सकें।

इस समूचे परिप्रेक्ष्य में यह स्पष्ट है कि न्यू मीडिया में हिंदी सामग्री की जो प्रगति हो रही हैवह मात्र भाषा के लिए नहींबल्कि भारत की सामाजिक समावेशितासांस्कृतिक निरंतरता और डिजिटल आत्मनिर्भरता के लिए भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हिंदी अब केवल मातृभाषा नहींबल्कि डिजिटल क्रांति की अग्रदूत भाषा बन चुकी है। यह  केवल विचारों को अभिव्यक्त कर रही हैबल्कि पहचानअवसरसशक्तिकरण और वैश्विक संवाद का माध्यम भी बन रही है। आवश्यकता केवल यह है कि इस दिशा में नीतिगततकनीकी और सांस्कृतिक रूप से संगठित प्रयास होंताकि यह प्रगति सततसर्वसमावेशी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावशाली बन सके।

 

डॉ. शैलेश शुक्ला Dr. Shailesh Shukla

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