माँ कभी सांप्रदायिक नहीं हो सकती: धर्मेंद्र प्रधान
शिक्षा मंत्री ने विद्यार्थियों और समूचे दिल्ली विश्वविद्यालय परिवार के साथ ली स्वदेशी संकल्प शपथ
डीयू के सभी कॉलेजों में होगा “वंदे मातरम” पर कार्यक्रमों का आयोजन: कुलपति प्रो. योगेश सिंह
नई दिल्ली, 10 नवंबर।
राष्ट्रीय गीत “वंदे मातरम” के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान मुख्यातिथि रहे जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता डीयू कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने की। इस अवसर पर डीन ऑफ कॉलेजेज़ प्रो. बलराम पाणी विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे। कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अपने संबोधन में कहा कि वंदे मातरम का एक-एक शब्द माँ को समर्पित है, और माँ कभी सांप्रदायिक नहीं हो सकती। इस अवसर पर धर्मेंद्र प्रधान ने सामूहिक रूप से विद्यार्थियों और समूचे दिल्ली विश्वविद्यालय परिवार के साथ स्वदेशी संकल्प शपथ भी ली। कार्यक्रम को लेकर जानकारी देते हुए डीयू कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने बताया कि डीयू में साल भर “वंदे मातरम” पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इस दौरान डीयू के सभी कॉलेजों में कार्यक्रम आयोजित होंगे।
कार्यक्रम के आरंभ में “वंदे मातरम” के सम्पूर्ण स्वरूप का सामूहिक गान किया गया। इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अपने संबोधन में कहा कि 150 साल पहले “वंदे मातरम” गीत की रचना की गई थी। 19वीं सदी में भारत किन परिस्थितियों में गुजरा, पूरी 19वीं सदी के प्रारम्भ से ही भारत ने कभी अंग्रेजों को सहन नहीं किया था। जगह-जगह पर उनके खिलाफ विद्रोह का माहौल बना हुआ था.
1857 भी सकी एक घटना मात्र है। देश के विभिन्न भागों में उससे पहले भी विद्रोह की घटनाएँ हुई हैं। मंत्री ने कहा कि भारत के नागरिकों ने एक लंबी लड़ाई के बाद 1947 में देश को आजाद करवाया। ये आजादी एकाएक एक क्षण में नहीं आई, बल्कि अनेक प्रयासों के बाद 1947 में ये परिस्थिति हमें मिली। उस स्थिति में जो मुख्य घटनाएँ हुई, उसी दौरान राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने के लिए ऋषि बंकिम चंद्र चटर्जी के द्वारा लिखी गई आनंद मठ की ये कविता “वंदे मातरम” चेतना की वाहक है जिसने देश को एकत्रित किया।
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि ये “वंदे मातरम” भारतीयों के लिए कालजयी रचना है। काल निर्पक्ष है-काल सापक्ष है। “वंदे मातरम” की जो भावना है और उसमें जो प्रेरणा है वह सभी समय में हमारे लिए प्रासंगिक है। आज 21वीं सदी के पहले 25 सालों के बाद “वंदे मातरम” के डेढ़ सौ साल मनाते हुए जब हम सब एकत्रित हुए हैं, तो फिर एक बार भारतीय चेतना को जागृत करने के लिए हम सब ने मन बनाया है। आने वाले 22 साल में भारत आजादी की शताब्दी मनाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने लक्ष्य रखा है कि 2047 तक देश विकसित होना चाहिए।
धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि “वंदे मातरम” के गान की आवश्यकता इसलिए पड़ी है, कि दुनिया में भारत देश को एक बार फिर से मजबूत करना है। तब आजादी के लिए हमने “वंदे मातरम” गाया था, इस बार हम एकत्रित होकर समृद्धि के लिए “वंदे मातरम” गा रहे हैं। समृद्धि आने से ही विकसित भारत हो पाएगा, और उसमें दिल्ली विश्वविद्यालय की एक प्रमुख भूमिका है। उन्होंने कहा कि आजाद भारत में “वंदे मातरम” का पूर्णांग गायन नहीं हो पाया। अब भारत सरकार ने निर्णय किया है कि अब से “वंदे मातरम” का पूर्णांग गायन होगा। इसको जन आंदोलन में परिवर्तित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकारी निर्णय से यह जन आंदोलन में परिवर्तित नहीं होगा, अगर यह जन के अंदर, मन के अंदर, विद्यार्थियों के अंदर और नई पीढ़ी के अंदर बैठ जाएगा, तभी यह जन आंदोलन में परिवर्तित होगा।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डीयू कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि “वंदे मातरम” 150 वर्ष का हो गया है। ये 150 वर्ष कैसे रहे! ये वर्ष राष्ट्रीय चेतना के वर्ष, बदलते भारत के वर्ष, अंधेरे से उजाले के वर्ष, अंग्रेजों से छुटकारे के वर्ष और भारत के संघर्ष के वर्ष रहे हैं। भारत की इन ये 150 वर्ष की जो संघर्ष की यात्रा रही है, “वंदे मातरम” उसका उद्घोष रहा है। उसने प्रेरणा का काम किया, जगाने का काम किया और मन को आगे बढ़ाने का काम किया है। कुलपति ने डीयू के इस कार्यक्रम में आने के लिए केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का आभार प्रकट किया। इस अवसर पर उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत सरकार का आभार प्रकट करते हुए कहा कि उन्होंने इस कालजयी गीत को भारत के मनों के नजदीक लाने का काम किया है। कुलपति ने कहा कि “वंदे मातरम” राष्ट्र प्रेम की भावना है और राष्ट्र भक्ति का मंत्र है। इस कार्यक्रम के दौरान रामजस कॉलेज के प्रिंसिपल प्रो. अजय अरोड़ा और वाइस प्रिंसिपल प्रो. रुचिका वर्मा सहित अनेकों कॉलेजों के प्रिंसिपल, डीयू के अधिकारी, शिक्षक और अनेकों विद्यार्थी उपस्थित रहे।






