*‘वेद मंजूषा’ ग्रंथमाला 17 खंडों में प्रकाशित: 20,348 ऋचाएं समाविष्ट : 18 वर्षों के परिश्रम का प्रकाशन
राज्यपालश्री आचार्य देवव्रतजी ने राजभवन-गांधीनगर में नई दिल्ली के नीता प्रकाशन द्वारा प्रकाशित महाग्रंथ 'वेद मंजूषा' का विमोचन किया। ‘वेद मंजूषा’ ग्रंथमाला 17 खंडों में प्रकाशित की गई है, जिसमें 20,348 ऋचाएं सम्मिलित की गई हैं। इस ग्रंथ की विशेषता यह है कि इसमें संस्कृत, हिंदी और अंग्रेज़ी तीनों भाषाओं में वेद की ऋचाओं का अनुवाद दिया गया है। ताकि किसी को वेद पढ़ने में कठिनाई न हो। इसके अतिरिक्त प्रत्येक ऋचा का अर्थ और उसका सारांश भी दिया गया है।
‘वेद मंजूषा’ के विमोचन के इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के सेवानिवृत्त प्रोफेसर, साहित्यकार- अनुवादक डॉ. पूरनचंद टंडन तथा नीता प्रकाशन के श्री राकेश गुप्ता एवं राजभवन के अग्र सचिव श्री अशोक शर्मा उपस्थित रहे।
राज्यपालश्री आचार्य देवव्रतजी ने इस अवसर पर कहा कि भारत की धरती पर जन्मे सभी लोगों को वेदों से परिचित होना चाहिए। क्योंकि वेद ऐसे शास्त्र हैं जिनका कोई लेखक नहीं है, यह मनुष्य को प्राप्त ईश्वरीय ज्ञान है। ऐसी कोई विद्या नहीं है जो वेदों में न हो। वेद सभी विद्याओं के जनक हैं।
उन्होंने कहा कि समस्त सत्य का मूल वेद है, लेकिन हम वेदों को भूल गए हैं। गुजरात की भूमि पर जन्में एक महापुरुष स्वामी दयानंद सरस्वतीजी ने वेदों के उत्थान का कार्य किया है। यदि वह नहीं होते, तो हजारों वर्षों से वेदों पर पड़ी धूल दूर न होती और हमें वेदों का परिचय न होता।
नीता प्रकाशन द्वारा बहुत महान कार्य किया गया है। आज हमारे बीच स्वर्गीय पूज्य राधेश्यामजी गुप्ता नहीं हैं। लेकिन ‘वेद मंजूषा’ महाग्रंथ के माध्यम से इस अदृश्य ज्ञान को जनता में फैलाने के उनके महान संकल्प के कारण वह अमर हो गए हैं। उनका किया कार्य आने वाली पीढ़ियों के लिए वरदान साबित होगा।
राज्यपालश्री आचार्य देवव्रतजी ने कहा कि इस महाग्रंथ के हिंदी अनुवादक डॉ. पूरनचंद टंडन स्वयं भी एक जीवंत ज्ञानकोश हैं, वह ज्ञान का भंडार हैं, वेद और साहित्य के महान विद्वान हैं। उनके द्वारा वेदों के विशाल स्वरूप को सरल बनाया गया है। लोग वेदों को हिंदी और अंग्रेज़ी में सरलता से समझ सकें ऐसी व्यवस्था भी उनके द्वारा की गई है।
राज्यपालश्री आचार्य देवव्रतजी ने पुस्तक 'राष्ट्र मंजूषा' का उल्लेख करते हुए कहा कि इस पुस्तक को मैं दो दिन तक पढ़ता रहा, जैसे-जैसे पढ़ता गया, वैसे-वैसे ज्ञान का खज़ाना खुलता गया।
इस अवसर पर प्रोफेसर डॉ. पूरन चंद टंडन ने कहा कि इस संपूर्ण कार्य में लगभग 18 वर्ष का समय लगा है। लेकिन मुझे गर्व है कि अपने देश, संस्कृति और भारतीयता के लिए कुछ किया है। चाहे जितना भी खर्च हुआ हो, लेकिन ‘न भूतो न भविष्यति’ ऐसे मील के पत्थर स्वरूप प्रकाशन प्रसारित करने का नीता प्रकाशन के संस्थापक राधेश्याम गुप्ताजी का सपना था। इस ग्रंथ के प्रकाशन से पहले उनका दुःखद निधन हुआ। राधेश्यामजी की पत्नी श्रीमती शांति देवीजी का सपना था कि अपने पति के स्वप्न को पूरा किया जाए। इसलिए राधेश्याम गुप्ताजी के पुत्र राकेश गुप्ता के साथ मिलकर यह कार्य पूरा किया। भारत में ऐसा कोई प्रकाशन या पुस्तक नहीं है। इसका उल्लेख करते हुए उन्होंने राज्यपालश्री आचार्य देवव्रतजी का आभार व्यक्त किया।
राज्यपाल जी ने नीता प्रकाशन के श्री राकेश गुप्ता और प्रोफेसर डॉ. पूरन चंद टंडन को सम्मानित किया। उन्होंने आशा जतायी कि यह पुस्तक यह श्रृंखला पूरी दुनिया तक पहुचेगी, जिससे विदेश के लोगों को भी भारत की भव्य संस्कृति का परिचय हो सके।