भारत की विविधता को नजरअंदाज करना नामुमकिन: प्रो पुरुषोत्तम अग्रवाल*


नई दिल्ली, 8 अप्रैल। "भारत की बहुलतावादी और बहुसांस्कृतिक परंपरा और संस्कृति को भुलाकर जब कोई विविधता के विविध रूपों को नजरअंदाज करता है तो वह भारत के निर्माण की नहीं बल्कि भारत के विध्वंस की परिकल्पना कर रहा है। किसी सत्ता या किसी ताकत की बदौलत थोड़े दिन के लिए यह करने में कोई सफल भले हो जाए लेकिन लंबड समय तक भारत की बहुसंख्यक जनता इसे स्वीकार नहीं कर सकती।" सुप्रसिद्ध चिंतक, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और संघ लोक सेवा आयोग के पूर्व सदस्य प्रोo पुरुषोत्तम अग्रवाल ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि इतिहास को ध्वस्त करने बदला लेने के लिए पढ़ते हैं या सीखने के लिए पढ़ते है। वे बी डी कॉलेज, मीठापुर पटना और इंटेलेक्चुअल फोरम फिर एकेडमिक डिस्कशन के संयुक्त तत्वावधान में जवाहर भवन, नई दिल्ली में "भारत की परिकल्पना: अतीत वर्तमान और भविष्य" विषय पर 8 अप्रैल को  आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के पहले दिन  बोल रहे थे। 

                  


कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए B. D. कॉलेज के प्राचार्य श्री विवेकानंद सिंह ने कहा कि भारत की कल्पना सभी भारतवासियों को आपस में मिलकर ही की जा सकती है। इतिहासकार प्रो o सलिल मिश्रा ने कहा कि भारत को अलग अलग समय में इतिहास में अलग अलग रूप में देखा गया है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से इसे सनातन रूप में देखा जा रहा है। यह चार हजार साल पीछे ले जाकर भारत को फिक्स कर देने जैसा है। या भारत की आधुनिक परिकल्पना के खिलाफ है।दिल्ली विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के प्रोo अपूर्वानंद ने कहा कि भारत के अलग अलग हिस्से, समुदायों की कल्पना भिन्न-भिन्न हो सकती है लेकिन यह भारत की कल्पना क्यों नहीं हो सकती है?दुर्भाग्यवश आज उत्तर पूर्वी राज्यों खासकर मणिपुर, जम्मू कश्मीर और  दक्षिण भारत के राज्य केरल, तामिलनाडु आदि के साथ भेदभाव किया जा रहा है। अगर यदि व्यापक मानवीय सहानुभूति नहीं है तो हमारी एक दूसरे के साथ रिश्ता रखने की चाहत खत्म हो रही है। मणिपुर, कश्मीर, केरल, तमिलनाडु इसके उदाहरण हैं।कार्यक्रम में डॉ सकुल कुंद्रा और प्रोफेसर शुभेंदु रंजन राज ने भारत में संघवाद से जुड़ी संवैधानिक समस्याओं पर अपने विचार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन इंटेलेक्चुअल फोरम फॉर एकेडमिक डिस्कशन के संयोजक और संगोष्ठी के आयोजक प्रोo धनंजय कुमार दुबे ने किया।

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