भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता : अवसरों और चुनौतियों की समीक्षा
भारत और यूनाइटेड किंगडम (यूके) के बीच मुक्त व्यापार समझौता (FTA), जिसे आधिकारिक रूप से व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौता (CETA) कहा गया है, 24 जुलाई 2025 को लंदन में हस्ताक्षरित हुआ। यह समझौता दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को 2030 तक 120 अरब डॉलर तक दोगुना करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखता है। 2023-24 वित्तीय वर्ष में भारत-यूके व्यापार 21.34 बिलियन डॉलर तक पहुंचा, जो पिछले वर्ष के 20.36 बिलियन डॉलर से अधिक है। इस समझौते के तहत 99% भारतीय निर्यात यूके में शुल्क-मुक्त होंगे, जिसमें चमड़ा, वस्त्र, और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्र शामिल हैं। इसके बदले में, यूके के उत्पाद, जैसे व्हिस्की और लग्जरी कारें, भारत में सस्ते होंगे। यह ऐतिहासिक समझौता न केवल व्यापार को बढ़ावा देगा, बल्कि निवेश, नवाचार, और रोजगार सृजन में भी योगदान देगा। इस संपादकीय में, हम इस समझौते के लाभों, चुनौतियों, और भारत के लिए इसके दीर्घकालिक प्रभावों की समीक्षा करेंगे, साथ ही इसे एक वैश्विक आर्थिक रणनीति के हिस्से के रूप में देखेंगे।
भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौते की वार्ता औपचारिक रूप से 2022 में शुरू हुई थी, और कई दौर की गहन चर्चाओं के बाद, 6 मई 2025 को दोनों पक्षों ने समझौते की शर्तों को अंतिम रूप दिया। नवंबर 2024 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूके के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर के बीच हुई मुलाकात ने इस प्रक्रिया को गति दी। भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और यूके के विदेश मंत्री जोनाथन रेनॉल्ड्स ने फरवरी 2025 से लेकर जुलाई तक कई बैठकों में इस समझौते को आकार दिया। यह समझौता न केवल वस्तुओं के व्यापार को कवर करता है, बल्कि सेवाओं, बौद्धिक संपदा अधिकारों, सरकारी खरीद, और नवाचार जैसे क्षेत्रों को भी शामिल करता है।
यह समझौता भारत की नई विदेश व्यापार नीति का हिस्सा है, जो पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं के साथ संबंधों को मजबूत करने और चीन पर आपूर्ति श्रृंखला निर्भरता को कम करने पर केंद्रित है। भारत ने हाल के वर्षों में यूरोपीय संघ, अमेरिका, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ भी मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत तेज की है। भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता इस रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि यूके भारत का सातवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, और यह समझौता दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को और गहरा करेगा।
भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता भारत के लिए कई महत्वपूर्ण लाभ लाता है। सबसे पहले, टैरिफ में कमी भारतीय निर्यातकों के लिए यूके के बाजार को अधिक सुलभ बनाएगी। वर्तमान में, भारत से यूके को निर्यात किए जाने वाले सामानों पर औसतन 4.2% आयात शुल्क लगता है। इस समझौते के तहत 95% से अधिक कृषि टैरिफ लाइनों और 1,659 इंजीनियरिंग टैरिफ लाइनों पर शुल्क शून्य हो जाएगा। इससे भारतीय टेक्सटाइल्स, जूते, गहने, और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों को 23 बिलियन डॉलर के नए अवसर मिलेंगे। विशेष रूप से, भारतीय जेनेरिक दवाओं की यूके बाजार में प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी, क्योंकि शुल्क-मुक्त प्रावधान लागू होंगे।
दूसरा, यह समझौता भारत के छोटे और मध्यम उद्यमों (SMEs) के लिए लाभकारी होगा। यूके के बाजार में आसान पहुंच से भारतीय छोटे और मध्यम उद्यमों को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में शामिल होने का अवसर मिलेगा। उदाहरण के लिए, ज्वैलरी निर्यात के अगले 2-3 वर्षों में दोगुना होने की उम्मीद है। इसके अलावा, समुद्री उत्पादों जैसे झींगा और मछली के निर्यातकों को बेहतर मूल्य प्राप्त होंगे, क्योंकि यूके ने इन पर टैरिफ हटा दिया है।
तीसरा, सेवा क्षेत्र में भारत को महत्वपूर्ण लाभ मिलने की संभावना है। भारत की आईटी, स्वास्थ्य सेवा, और शिक्षा सेवाओं को यूके में अधिक पहुंच मिलेगी। यह समझौता कुशल पेशेवरों और छात्रों की गतिशीलता को भी बढ़ावा देगा, जिससे भारतीय पेशेवरों को यूके में रोजगार के नए अवसर प्राप्त होंगे। साथ ही, यह समझौता प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और नवाचार को प्रोत्साहित करेगा, जो भारत के मेक इन इंडिया अभियान को गति देगा।
चौथा, यह समझौता भारत की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में स्थिति को मजबूत करेगा। चीन पर निर्भरता कम करने के लिए, यूके और भारत ने आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन बढ़ाने पर जोर दिया है। यह भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोटिव क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से लाभकारी होगा, जो वैश्विक मांग को पूरा करने में सक्षम होंगे।
के के लिए भी यह समझौता कई लाभ लाता है। भारत जैसे तेजी से बढ़ते बाजार में यूके की कंपनियों को आसान पहुंच मिलेगी। विशेष रूप से, व्हिस्की, ऑटोमोबाइल, और अन्य लग्जरी सामानों पर भारत में आयात शुल्क हटने से ये उत्पाद भारतीय उपभोक्ताओं के लिए सस्ते होंगे। यह यूके के लिए भारत के मध्यम वर्ग की बढ़ती मांग को भुनाने का अवसर प्रदान करता है। इसके अलावा, यूके की कानूनी और वित्तीय सेवाएं भारत में अधिक प्रतिस्पर्धी बनेंगी।
इसके साथ ही, यूके को भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में निवेश के अवसर मिलेंगे। भारत की महत्वाकांक्षी हरित ऊर्जा योजनाएं, जैसे 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य, यूके की कंपनियों के लिए आकर्षक हैं। यह समझौता दोनों देशों के बीच संयुक्त अनुसंधान और विकास को भी बढ़ावा देगा।
हालांकि भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता कई अवसर लाता है, लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियां भी हैं। पहली चिंता यह है कि टैरिफ में एकतरफा रियायतें भारत के स्थानीय उद्योगों को नुकसान पहुंचा सकती हैं। उदाहरण के लिए, यूके से सस्ते आयात, जैसे व्हिस्की और ऑटोमोबाइल, भारतीय निर्माताओं के लिए प्रतिस्पर्धा को कठिन बना सकते हैं। विशेष रूप से, भारतीय ऑटोमोटिव क्षेत्र, जो पहले से ही घरेलू और वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहा है, को नुकसान हो सकता है।
दूसरा, सेवा क्षेत्र में सीमित पहुंच एक मुद्दा हो सकता है। हालांकि समझौता भारतीय पेशेवरों और छात्रों की गतिशीलता को बढ़ावा देता है, लेकिन यूके की सख्त वीजा नीतियां और श्रम नियम इस लाभ को सीमित कर सकते हैं। भारत ने बार-बार कुशल पेशेवरों के लिए आसान वीजा प्रक्रिया की मांग की है, लेकिन यूके ने इस पर पूरी तरह सहमति नहीं दी है।
तीसरा, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) और डेटा स्थानीयकरण से संबंधित प्रावधान विवादास्पद हो सकते हैं। भारत ने डेटा स्थानीयकरण पर सख्त नीतियां अपनाई हैं, जो यूके की डिजिटल और तकनीकी कंपनियों के लिए बाधा बन सकती हैं। इसके अलावा, जेनेरिक दवाओं पर यूके की सख्त IPR नीतियां भारतीय फार्मास्यूटिकल उद्योग को प्रभावित कर सकती हैं।
चौथा, समझौते की पारदर्शिता और संवीक्षा की कमी एक चिंता का विषय है। भारत में ‘मुक्त व्यापार समझौता’ वार्ताएं अक्सर बंद दरवाजों के पीछे होती हैं, जिससे हितधारकों और जनता को प्रक्रिया की पूरी जानकारी नहीं मिलती। यह विशेष रूप से छोटे किसानों और छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए चिंताजनक है, जो इस समझौते के प्रभावों से सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं।
भारत-यूके ‘मुक्त व्यापार समझौता’ भारत की व्यापक विदेश व्यापार नीति का हिस्सा है, जो निर्यात-उन्मुख विनिर्माण और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एकीकरण पर जोर देती है। भारत का लक्ष्य 2023 तक 450-500 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निर्यात शिपमेंट को प्राप्त करना था, और यह समझौता इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। भारत को इस समझौते का अधिकतम लाभ उठाने के लिए कुछ रणनीतिक कदम उठाने होंगे।
पहला, भारत को अपने घरेलू उद्योगों को मजबूत करना होगा ताकि वे यूके के सस्ते आयात का सामना कर सकें। इसके लिए मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियानों को और गति देनी होगी। दूसरा, भारत को सेवा क्षेत्र में अपनी मांगों, विशेष रूप से वीजा और गतिशीलता पर, मजबूती से दबाव बनाए रखना होगा। तीसरा, पारदर्शिता बढ़ाने के लिए मुक्त व्यापार समझौता वार्ताओं में हितधारकों, जैसे किसानों, छोटे और मध्यम उद्यमों, और उद्योग संगठनों, को शामिल करना होगा।
भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता दोनों देशों के लिए एक ऐतिहासिक कदम है, जो व्यापार, निवेश, और आर्थिक सहयोग को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। यह भारत के लिए अपने निर्यात को बढ़ाने, छोटे और मध्यम उद्यमों को सशक्त बनाने, और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी स्थिति को मजबूत करने का एक अनूठा अवसर है। हालांकि, टैरिफ रियायतें, सेवा क्षेत्र की सीमाएं, और पारदर्शिता की कमी जैसे मुद्दों को सावधानीपूर्वक संबोधित करना होगा। भारत को इस समझौते का लाभ उठाने के लिए अपनी घरेलू नीतियों को मजबूत करना होगा और वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति को और सुदृढ़ करना होगा। यह समझौता न केवल आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि भारत-यूके संबंधों को एक नई दिशा देता है।
(पूनम चतुर्वेदी शुक्ला विश्व प्रसिद्ध भाषाकर्मी, साहित्यकर्मी और संस्कृतिकर्मी हैं, जो ‘न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन’ और ‘अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन’ की संस्थापक-निदेशक हैं। उन्होंने विश्व के अनेक प्रतिष्ठित संस्थानों और संगठनों के सहयोग से सैकड़ों सांस्कृतिक और साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन किया है। वर्तमान में वे ‘अंतरराष्ट्रीय हिंदी पत्रकारिता वर्ष 2025-26’ का वैश्विक स्तर पर संयोजन कर रही हैं।)
पूनाम चतुर्वेदी शुक्ला
संस्थापक-निदेशक
अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन एवं न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन आशियाना, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
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