भारत की वैश्विक कूटनीति : नई विश्व व्यवस्था में उभरता नेतृत्व

 भारत की वैश्विक कूटनीति : नई विश्व व्यवस्था में उभरता नेतृत्व


                



21वीं सदी की शुरुआत से लेकर अब तक वैश्विक राजनीतिकूटनीति और आर्थिक समीकरणों में गहरे और तेज़ परिवर्तन हुए हैं। अमेरिका और पश्चिमी देशों की एकध्रुवीय व्यवस्था धीरे-धीरे बहुध्रुवीय व्यवस्था में परिवर्तित हो रही हैजिसमें भारत की भूमिका न केवल एक निष्क्रिय दर्शक की रही हैबल्कि वह एक सक्रियआत्मविश्वासी और दायित्वबोध से युक्त नेतृत्वकर्ता के रूप में उभरा है। भारत अब वैश्विक पटल पर न केवल अपनी संप्रभुता की रक्षा कर रहा हैबल्कि वह विकासशील देशों की आवाज़ बनकर वैश्विक नीति-निर्धारण में निर्णायक भूमिका निभा रहा है।

भारत की वैश्विक कूटनीति की विशेषता यह है कि वह शक्ति के प्रदर्शन पर नहींसंतुलन और संवाद पर आधारित है। भारत न किसी गुट में शामिल होता हैन किसी शक्ति के दबाव में झुकता है। वह QUAD जैसे समूहों में अमेरिकाजापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ रणनीतिक भागीदारी करता हैतो वहीं ब्रिक्सएससीओ और रूस जैसे परंपरागत सहयोगियों के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को भी मज़बूती से आगे बढ़ाता है। इस दोहरी संतुलित कूटनीति के पीछे भारत का यह स्पष्ट दृष्टिकोण है कि वह किसी गुट की राजनीति नहीं करेगाबल्कि "वसुधैव कुटुंबकम्" की अवधारणा को मूर्त रूप देगा।

भारत की कूटनीतिक सक्रियता कोविड-19 महामारी के दौरान वैश्विक मंचों पर स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हुई। जब अनेक विकसित देश अपने-अपने राष्ट्रों में सीमित हो गए थेतब भारत ने “वैक्सीन मैत्री” के अंतर्गत 150 से अधिक देशों को कोविड वैक्सीन उपलब्ध कराकर यह सिद्ध कर दिया कि भारत केवल अपने लिए नहींबल्कि समूचे वैश्विक समाज के लिए सोचता है। इस पहल ने भारत को ‘विश्वगुरु’ की संकल्पना से जोड़ते हुएएक सेवा-प्रधानदायित्वशील और मानवीय नेतृत्वकर्ता की भूमिका प्रदान की।

डिजिटल कूटनीति में भी भारत अग्रणी बनकर उभरा है। आधारडिजिलॉकरकोविनयूपीआई जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म न केवल भारत की आंतरिक प्रशासनिक दक्षता को बढ़ा रहे हैंबल्कि उन्हें अफ्रीकीदक्षिण एशियाई और लैटिन अमेरिकी देशों में मॉडल के रूप में अपनाया जा रहा है। भारत की यह डिजिटल कूटनीति पारंपरिक भौगोलिक सीमाओं से ऊपर उठकर तकनीकी और मानव केंद्रित साझेदारी को बढ़ावा देती है। भारत ने यह दिखाया कि प्रौद्योगिकी को मानवता के कल्याण में कैसे नियोजित किया जा सकता है।

भारत की सांस्कृतिक कूटनीति भी उसकी वैश्विक भूमिका को व्यापक स्वरूप देती है। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की स्वीकृति और दुनिया भर में उसकी स्वीकृति इस बात का उदाहरण है कि भारत की सॉफ्ट पावर अब महज सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व तक सीमित नहीं रहीबल्कि यह रणनीतिक संवाद और वैश्विक संबंधों का आधार बन रही है। आयुर्वेदभारतीय खानपानभारतीय दर्शनभारत की भाषाएंफिल्में और साहित्य – सभी मिलकर भारत की एक विशिष्ट छवि का निर्माण करते हैं जो केवल आकर्षक नहींबल्कि प्रेरणास्पद भी है।

जी-20 की अध्यक्षता भारत की कूटनीतिक सफलता की एक ऐतिहासिक उपलब्धि रही। "एक पृथ्वीएक परिवारएक भविष्य" (One Earth, One Family, One Future) के सूत्र वाक्य के साथ भारत ने वैश्विक दक्षिण (Global South) की आवाज़ को प्रमुखता दी और उन मुद्दों को प्राथमिकता दिलाई जो लंबे समय तक उपेक्षित रहेजैसे– जलवायु न्यायसतत विकासखाद्य सुरक्षावित्तीय समावेशन और वैश्विक ऋण संकट। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह नीति-निर्धारण की मुख्यधारा में अब केवल एक निमंत्रित सदस्य नहींबल्कि नेतृत्वकर्ता है।

जलवायु कूटनीति के क्षेत्र में भी भारत अग्रिम पंक्ति में है। प्रधानमंत्री द्वारा प्रस्तुत “पंचामृत” संकल्प – नेट ज़ीरो लक्ष्यगैर-जीवाश्म ईंधन पर ज़ोरग्रीन हाइड्रोजन मिशन आदि– वैश्विक समुदाय को भारत की प्रतिबद्धता दिखाते हैं। भारत "वन सनवन वर्ल्डवन ग्रिड" जैसी पहलों के माध्यम से एक सस्तीस्वच्छ और न्यायसंगत ऊर्जा व्यवस्था के लिए वैश्विक साझेदारी को प्रेरित कर रहा है।

रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में भी भारत ने अपनी कूटनीति को नए आयाम दिए हैं। सीमाओं की सुरक्षा के साथ-साथ समुद्री सुरक्षासाइबर स्पेस और उभरते खतरों से निपटने के लिए भारत बहुपक्षीय मंचों पर अपनी सक्रियता दिखा रहा है। रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देते हुए भारत अब रक्षा उपकरणों का निर्यातक बन रहा हैजिससे उसकी सामरिक स्थिति और सुदृढ़ हुई है।

प्रवासी भारतीयों के साथ गहरा संवाद स्थापित करना भी भारत की कूटनीतिक रणनीति का अहम हिस्सा है। प्रवासी भारतीय आज केवल भारत के आर्थिक या सांस्कृतिक दूत नहीं हैंबल्कि वे भारत की विदेश नीति के सक्रिय हितधारक बन चुके हैं। ‘भारत को जानो’ और ‘प्रवासी भारतीय दिवस’ जैसे प्रयासों ने भारत और वैश्विक भारतीय समुदाय के बीच संबंधों को संस्थागत स्वरूप प्रदान किया है।

भारत की कूटनीति अब केवल “राष्ट्र-हित” की संकीर्ण परिभाषा से ऊपर उठ चुकी है। यह मानवता-हितपर्यावरण-हित और विश्व-हित की अवधारणाओं को साथ लेकर चलती है। संयुक्त राष्ट्रब्रिक्सएससीओक्वाड, G20, आर्थिक सहयोग मंचों से लेकर संस्कृतिक आयोजनों तक – भारत की उपस्थिति आज सर्वव्यापक है। यह उपस्थिति केवल संख्या नहींगुणवत्ता आधारित है।

निष्कर्षतःभारत की वैश्विक कूटनीति आज आत्मविश्वाससंतुलननीतिगत स्पष्टतासंस्कृति-आधारित संवादप्रौद्योगिकी और मानवता की सेवा जैसे मूल्यों से समृद्ध है। यह ऐसी कूटनीति है जो टकराव नहींसमाधान चाहती हैप्रभुत्व नहींसहभागिता चाहती हैऔर वर्चस्व नहींसमावेश पर आधारित विश्व व्यवस्था का निर्माण करना चाहती है। भारत का यह उभरता वैश्विक नेतृत्व आने वाले वर्षों में नई विश्व व्यवस्था को एक नई दिशा देगाजिसमें शांतिविकास और न्याय – तीनों के समन्वय की संभावना निहित होगी।


पूनाम चतुर्वेदी शुक्ला

संस्थापक-निदेशक

अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन एवं न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन

आशियाना, लखनऊ, उत्तर प्रदेश : Founder@SrijanSansar.com, मोबाइल : 9312053330


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