जल संकट : टिकाऊ प्रबंधन की अनिवार्यता

 जल संकट : टिकाऊ प्रबंधन की अनिवार्यता 









डॉशैलेश शुक्ला

वैश्विक प्रधान संपादक


सृजन संसार अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समूह

आशियाना, लखनऊ, उत्तर प्रदेश

ईमेल पता : PoetShaielsh@gmail.com 

मो. : 91-9312053339, 8759411563

विश्व बैंक (2025): विश्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट (अप्रैल 2025) में कहा गया है कि भारतजो विश्व की 18% आबादी का घर हैके पास केवल 4% जल संसाधन उपलब्ध हैंजिससे यह विश्व के सबसे अधिक जल-तनावग्रस्त देशों में से एक है। जलवायु परिवर्तन और अनियमित मानसून ने इस चुनौती को और बढ़ा दिया है। विश्व बैंक के अनुसारवैश्विक स्तर पर लगभग 2.2 अरब लोग सुरक्षित पेयजल की पहुंच से वंचित हैं और 4.2 अरब लोगों को स्वच्छता सुविधाओं का अभाव है। भारत मेंनीति आयोग की 2018 की रिपोर्ट ने चेतावनी दी थी कि 2030 तक देश के 40% से अधिक हिस्से में गंभीर जल संकट हो सकता है। दिल्लीबेंगलुरुचेन्नई और हैदराबाद जैसे प्रमुख शहर पहले ही "डे ज़ीरोकी स्थिति का सामना कर चुके हैंजहां जल स्रोत पूरी तरह सूख गए। यह आंकड़ा और भी भयावह है : भारत में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1951 में 5,177 घन मीटर से घटकर 2025 में केवल 1,341 घन मीटर रह गई है। यह स्थिति  केवल चिंताजनक हैबल्कि तत्काल कार्रवाई की मांग करती है। जल संकट अब केवल पर्यावरणीय समस्या नहींबल्कि सामाजिकआर्थिक और राजनीतिक संकट का रूप ले चुका है। इस संपादकीय मेंहम जल संकट के कारणोंप्रभावों और टिकाऊ जल प्रबंधन की आवश्यकता पर चर्चा करेंगेसाथ ही भारत के संदर्भ में व्यावहारिक समाधानों का प्रस्ताव देंगे।

जल संकट के पीछे कई परस्पर जुड़े कारक हैं। सबसे पहलेजनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण ने जल की मांग को अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ा दिया है। भारत की जनसंख्या 1.4 अरब को पार कर चुकी है और 2030 तक 50% से अधिक लोग शहरों में रहने लगेंगे। शहरी क्षेत्रों में पानी की खपत ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में कहीं अधिक हैक्योंकि औद्योगीकरणघरेलू उपयोग और जीवनशैली में बदलाव ने जल की मांग को बढ़ाया है।

दूसराजलवायु परिवर्तन ने जल चक्र को बाधित किया है। अनियमित मानसूनसूखा और बाढ़ की बढ़ती घटनाएं जल संसाधनों की उपलब्धता को प्रभावित कर रही हैं। उदाहरण के लिए, 2023 में भारत के कई हिस्सों में मानसून की बारिश औसत से 10-15% कम रहीजिसने जलाशयों और भूजल स्तर को और कम कर दिया।

तीसराजल संसाधनों का अति-दोहन एक प्रमुख समस्या है। भारत में 80% से अधिक पेयजल और सिंचाई भूजल पर निर्भर है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसारदेश के 17 राज्यों में भूजल स्तर "अति-दोहनकी श्रेणी में है। पंजाबहरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यजो भारत के खाद्यान्न उत्पादन का केंद्र हैंसबसे अधिक प्रभावित हैं।

चौथाजल प्रदूषण ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है। गंगायमुना और अन्य प्रमुख नदियां औद्योगिक कचरेसीवेज और कृषि रसायनों से प्रदूषित हो चुकी हैं। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसारभारत में 70% सतही जल प्रदूषित हैजिससे पेयजल की कमी और बढ़ रही है।

अंत मेंनीतिगत और प्रशासनिक कमियां भी जिम्मेदार हैं। जल प्रबंधन के लिए एकीकृत दृष्टिकोण का अभावविभिन्न विभागों में समन्वय की कमी और अवैध जल उपयोग को रोकने में नाकामी ने संकट को गहरा किया है।

जल संकट के प्रभाव : जल संकट के प्रभाव बहुआयामी हैं। सबसे पहलेयह स्वास्थ्य पर गंभीर असर डालता है। दूषित पानी के सेवन से डायरियाहैजा और टाइफाइड जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसारभारत में प्रतिवर्ष लाख से अधिक लोग जलजनित बीमारियों के कारण मरते हैं।

दूसराजल संकट कृषि और खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करता है। भारत में 60% से अधिक कृषि सिंचाई पर निर्भर है और भूजल की कमी ने फसल उत्पादन को कम किया है। 2019 मेंमहाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में सूखे के कारण लाखों किसान प्रभावित हुएजिसने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाई।

तीसराजल संकट सामाजिक असमानता को बढ़ाता है। गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को स्वच्छ पानी की सबसे अधिक कमी झेलनी पड़ती है। महिलाएं और बच्चियांजो अक्सर पानी लाने की जिम्मेदारी संभालती हैंको लंबी दूरी तय करनी पड़ती हैजिससे उनकी शिक्षा और आजीविका पर असर पड़ता है।

चौथाजल की कमी औद्योगिक उत्पादन और आर्थिक विकास को प्रभावित करती है। जल-गहन उद्योग जैसे कपड़ाचमड़ा और बिजली उत्पादन पानी की कमी के कारण उत्पादन में कटौती कर रहे हैं। यह रोजगार और जीडीपी पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

टिकाऊ जल प्रबंधन की आवश्यकता : जल संकट से निपटने के लिए टिकाऊ जल प्रबंधन अपरिहार्य है। टिकाऊ जल प्रबंधन का अर्थ है जल संसाधनों का ऐसा उपयोग जो वर्तमान पीढ़ी की जरूरतों को पूरा करेसाथ ही भविष्य की पीढ़ियों के लिए जल उपलब्धता सुनिश्चित करे। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं : -

1. जल संरक्षण और पुनर्जनन : जल संरक्षण के लिए वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देना आवश्यक है। भारत मेंजहां औसतन 1,170 मिमी वार्षिक वर्षा होती हैवर्षा जल संचयन से भूजल स्तर को पुनर्जनन किया जा सकता है। तमिलनाडु और राजस्थान जैसे राज्यों में वर्षा जल संचयन की सफल कहानियां प्रेरणादायक हैं। उदाहरण के लिएराजस्थान के अलवर जिले में तारुण भारत संगठन ने पारंपरिक जोहड़ों के पुनरुद्धार से भूजल स्तर को 6-8 मीटर तक बढ़ाया है।

2. भूजल प्रबंधन : भूजल के अति-दोहन को रोकने के लिए सख्त नियम लागू करने होंगे। भूजल पुनर्भरण के लिए कृत्रिम रिचार्ज संरचनाएंजैसे चेक डैम और तालाबबनाए जाने चाहिए। साथ हीकिसानों को ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी जल-कुशल तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।

3. नदियों और जलाशयों का संरक्षण : नदियों के प्रदूषण को कम करने के लिए औद्योगिक कचरे और सीवेज के उपचार को अनिवार्य करना होगा। नमामि गंगे

जल संकट : टिकाऊ प्रबंधन की अनिवार्यता

डॉ. शैलेश शुक्ला

वैश्विक प्रधान संपादक

सृजन संसार अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समूह

आशियाना, लखनऊ, उत्तर प्रदेश

ईमेल पता : PoetShaielsh@gmail.com 

मो. : 91-9312053339, 8759411563

विश्व बैंक (2025): विश्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट (अप्रैल 2025) में कहा गया है कि भारत, जो विश्व की 18% आबादी का घर है, के पास केवल 4% जल संसाधन उपलब्ध हैं, जिससे यह विश्व के सबसे अधिक जल-तनावग्रस्त देशों में से एक है। जलवायु परिवर्तन और अनियमित मानसून ने इस चुनौती को और बढ़ा दिया है। विश्व बैंक के अनुसार, वैश्विक स्तर पर लगभग 2.2 अरब लोग सुरक्षित पेयजल की पहुंच से वंचित हैं और 4.2 अरब लोगों को स्वच्छता सुविधाओं का अभाव है। भारत में, नीति आयोग की 2018 की रिपोर्ट ने चेतावनी दी थी कि 2030 तक देश के 40% से अधिक हिस्से में गंभीर जल संकट हो सकता है। दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद जैसे प्रमुख शहर पहले ही "डे ज़ीरो" की स्थिति का सामना कर चुके हैं, जहां जल स्रोत पूरी तरह सूख गए। यह आंकड़ा और भी भयावह है : भारत में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1951 में 5,177 घन मीटर से घटकर 2025 में केवल 1,341 घन मीटर रह गई है। यह स्थिति न केवल चिंताजनक है, बल्कि तत्काल कार्रवाई की मांग करती है। जल संकट अब केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संकट का रूप ले चुका है। इस संपादकीय में, हम जल संकट के कारणों, प्रभावों और टिकाऊ जल प्रबंधन की आवश्यकता पर चर्चा करेंगे, साथ ही भारत के संदर्भ में व्यावहारिक समाधानों का प्रस्ताव देंगे।

जल संकट के पीछे कई परस्पर जुड़े कारक हैं। सबसे पहले, जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण ने जल की मांग को अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ा दिया है। भारत की जनसंख्या 1.4 अरब को पार कर चुकी है और 2030 तक 50% से अधिक लोग शहरों में रहने लगेंगे। शहरी क्षेत्रों में पानी की खपत ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में कहीं अधिक है, क्योंकि औद्योगीकरण, घरेलू उपयोग और जीवनशैली में बदलाव ने जल की मांग को बढ़ाया है।

दूसरा, जलवायु परिवर्तन ने जल चक्र को बाधित किया है। अनियमित मानसून, सूखा और बाढ़ की बढ़ती घटनाएं जल संसाधनों की उपलब्धता को प्रभावित कर रही हैं। उदाहरण के लिए, 2023 में भारत के कई हिस्सों में मानसून की बारिश औसत से 10-15% कम रही, जिसने जलाशयों और भूजल स्तर को और कम कर दिया।

तीसरा, जल संसाधनों का अति-दोहन एक प्रमुख समस्या है। भारत में 80% से अधिक पेयजल और सिंचाई भूजल पर निर्भर है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार, देश के 17 राज्यों में भूजल स्तर "अति-दोहन" की श्रेणी में है। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्य, जो भारत के खाद्यान्न उत्पादन का केंद्र हैं, सबसे अधिक प्रभावित हैं।

चौथा, जल प्रदूषण ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है। गंगा, यमुना और अन्य प्रमुख नदियां औद्योगिक कचरे, सीवेज और कृषि रसायनों से प्रदूषित हो चुकी हैं। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 70% सतही जल प्रदूषित है, जिससे पेयजल की कमी और बढ़ रही है।

अंत में, नीतिगत और प्रशासनिक कमियां भी जिम्मेदार हैं। जल प्रबंधन के लिए एकीकृत दृष्टिकोण का अभाव, विभिन्न विभागों में समन्वय की कमी और अवैध जल उपयोग को रोकने में नाकामी ने संकट को गहरा किया है।

जल संकट के प्रभाव : जल संकट के प्रभाव बहुआयामी हैं। सबसे पहले, यह स्वास्थ्य पर गंभीर असर डालता है। दूषित पानी के सेवन से डायरिया, हैजा और टाइफाइड जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में प्रतिवर्ष 4 लाख से अधिक लोग जलजनित बीमारियों के कारण मरते हैं।

दूसरा, जल संकट कृषि और खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करता है। भारत में 60% से अधिक कृषि सिंचाई पर निर्भर है और भूजल की कमी ने फसल उत्पादन को कम किया है। 2019 में, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में सूखे के कारण लाखों किसान प्रभावित हुए, जिसने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाई।

तीसरा, जल संकट सामाजिक असमानता को बढ़ाता है। गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को स्वच्छ पानी की सबसे अधिक कमी झेलनी पड़ती है। महिलाएं और बच्चियां, जो अक्सर पानी लाने की जिम्मेदारी संभालती हैं, को लंबी दूरी तय करनी पड़ती है, जिससे उनकी शिक्षा और आजीविका पर असर पड़ता है।

चौथा, जल की कमी औद्योगिक उत्पादन और आर्थिक विकास को प्रभावित करती है। जल-गहन उद्योग जैसे कपड़ा, चमड़ा और बिजली उत्पादन पानी की कमी के कारण उत्पादन में कटौती कर रहे हैं। यह रोजगार और जीडीपी पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

टिकाऊ जल प्रबंधन की आवश्यकता : जल संकट से निपटने के लिए टिकाऊ जल प्रबंधन अपरिहार्य है। टिकाऊ जल प्रबंधन का अर्थ है जल संसाधनों का ऐसा उपयोग जो वर्तमान पीढ़ी की जरूरतों को पूरा करे, साथ ही भविष्य की पीढ़ियों के लिए जल उपलब्धता सुनिश्चित करे। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं : -

1. जल संरक्षण और पुनर्जनन : जल संरक्षण के लिए वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देना आवश्यक है। भारत में, जहां औसतन 1,170 मिमी वार्षिक वर्षा होती है, वर्षा जल संचयन से भूजल स्तर को पुनर्जनन किया जा सकता है। तमिलनाडु और राजस्थान जैसे राज्यों में वर्षा जल संचयन की सफल कहानियां प्रेरणादायक हैं। उदाहरण के लिए, राजस्थान के अलवर जिले में तारुण भारत संगठन ने पारंपरिक जोहड़ों के पुनरुद्धार से भूजल स्तर को 6-8 मीटर तक बढ़ाया है।

2. भूजल प्रबंधन : भूजल के अति-दोहन को रोकने के लिए सख्त नियम लागू करने होंगे। भूजल पुनर्भरण के लिए कृत्रिम रिचार्ज संरचनाएं, जैसे चेक डैम और तालाब, बनाए जाने चाहिए। साथ ही, किसानों को ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी जल-कुशल तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।

3. नदियों और जलाशयों का संरक्षण : नदियों के प्रदूषण को कम करने के लिए औद्योगिक कचरे और सीवेज के उपचार को अनिवार्य करना होगा। नमामि गंगे


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