गुरुजन फंस गए फेर में !
नए नियमों से डीयू के कई गुरुजन नहीं बन पाए पीएचडी सुपरवाइजर
दिल्ली विश्वविद्यालय में पीएचडी सुपरवाइजर बनने के सख्त नियमों के चलते डीयू के कई गुरुजन फेरा में फंस गए हैं। यूजीसी के रेगुलेशन के नए नियमों के अनुसार पीएचडी सुपरवाइजर बनने की शर्त में संशोधन करने से ऐसा हुआ है। संशोधित शर्त के अनुसार यही शिक्षक पीएचडी सुपरवाइजर बन सकता है, जिसका रिसर्च पेपर यूजीसी केयर लिस्ट या फिर स्कोपस जर्नल लिस्ट में हो। इस मामले को लेकर बढ़ते रोष के चलते डीय द्वारा एक कमेटी गठित की गई थी, लेकिन इस कमेटी की बैठक में कोई हल नहीं निकल सका और यह बैठक बेनतीजा निकली।
वर्तमान समिति सदस्य व कार्यकारी सदस्य सुनील कुमार शर्मा और विद्वत परिषद सदस्य डॉ हरेन्द्रनाथ तिवारी ने बताया कि बैठक में किसी तरह की कोई सहमति नहीं हो सकी। अगर विद्वत परिषद इस फैसले को नही बदलता है तो इसको एनडीटीएफ के विद्वत परिषद सदस्यों द्वारा जोर शोर से उठाया जाएगा और इसके निदान का प्रयास किया जाएगा। डॉ तिवारी ने बताया कि पीएचडी सुपरविजन संबंधी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के रेगुलेशन 2022 मे कहा गया है कि पीएचडी सुपरवाइजर बनने के लिए रिसर्च पेपर यूजीसी और स्कोपस लिस्ट में जरूरी ।
बिना स्कॉपस नही रहा स्कोप। गुरुजन को पहले खुद पढ़ना होगा फिर होगा निर्देशक बनने का अधिकार। नही तो सारी योग्यता होगी बेकार। संघर्ष ही रास्ता है। नही तो नए अनुभवी शिक्षक नही बन पायेंगे निदेशक।
बैठक भी रही बेनतीजा
विश्वविद्यालय द्वारा किये गये संशोधनों से शिक्षक समुदाय में रोष है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के एक रेगुलरेशन को लेकर डीयू की 30 नवम्बर 2023 की बैठक में आनन में कुछ संशोधन कर दिये जो व्यवहारिक नहीं थे। उन्होंने कह दिया गया कि वही रीसर्च पेपर काउंट होंगे जो यूजीसी केयर लिस्ट में होगे या स्कोपस लिस्ट में होगे। रातोरात विश्वविद्यालय इसमें ऐसे बदलाव कर दिये जिससे हजारों गुरुजन पीएचडी सुपरवाइजर बनने के लिए एक रात में योग्य से अयोग्य हो गए हैं। इसको लेकर भारी रोष को देखते हुए विश्वविद्यालय विद्वत और कार्यकारी परिषद का एक विशेष सत्र बुलाया गया था। बैठक में इस मामले को देखने के लिए सोलह सदस्यीय एक कमेटी गठित की गई थी। इसमें बारह चुने हुए विद्वत और कार्यकारी परिषद सदस्य थे।
डॉ. तिवारी ने बताया कि शिक्षकों को उनके रीसर्च पेपर को यूजीसी केयर लिस्ट या स्कोपस में शामिल करवाने को लेकर समय भी नहीं दिया गया। पीएचडी करने वाले छात्रों को भी रीसर्च पेपर स्कोपस लिस्ट में डाल में रहे हो वह ठीक है, लेकिन शिक्षकों को लिए यह ठीक नहीं है। यह जो समिति इस मामले को देखने के लिए गठित की गई थी, उसमें इस मामले के साथ साथ विभागों में पीएचडी करने व कराने को लेकर अलग- अलग प्रैक्टिस हो रही थी, उसमें भी एकरुपता लाने की मांग थी। इसका भी कोई हल नहीं निकल सका। लिहाजा गठित कमेटी की बैठक बेनतीजा निकली।
सामाजिक न्याय के खिलाफ नया नियम
कुछ लोगो का मानना है कि ये सामाजिक न्याय के खिलाफ है और काफी सारे शिक्षक पिछड़े और दलित समुदाय से आते हैं जो अब योग्य हुए है उनको जबरन नए नियम लगा कर रोका जा रहा है।