भारतीय ज्ञान परंपरा जीवन के सहज योग का मूर्त स्वरूप है: प्रो वंदना झा, जे.एन. यू.
भाषा व संस्कृति हमारी चेतना की संवाहक है: प्रत्यूष वत्सल
डिजिटल युग में भारतीय भाषा और संस्कृति: चुनौतियाँ और समाधान – दूसरा दिन
संगोष्ठी के दूसरे दिन की शुरुआत गहन और संवादात्मक सत्रों के साथ हुई, जिसमें डिजिटल युग में भारतीय भाषाओं और संस्कृति के बदलते परिदृश्य पर जोर दिया गया। विभिन्न संस्थानों के शोधकर्ताओं और विद्वानों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए, जिनमें मुख्य विषय जैसे डिजिटल संरक्षण, भाषा प्रौद्योगिकी का विकास, और इंटरनेट पर सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व शामिल थे। इन सैद्धांतिक चर्चाओं के साथ-साथ, तकनीकी प्रशिक्षण सत्र भी आयोजित किए गए, जिनमें प्रतिभागियों को भाषा डिजिटलीकरण, मशीन अनुवाद, और कंटेंट निर्माण जैसी व्यावहारिक तकनीकों से अवगत कराया गया । सत्र की अध्यक्षता कर रहीं हिंदी विभाग की प्रभारी डॉ. प्रमिला का स्वागत स्मृति चिह्न भेंट कर किया गया।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में "शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरा का समावेश" विषय पर गहन चर्चा हुई। पैनल में शामिल वक्ताओं में अध्यक्ष प्रो. नरेंद्र मिश्रा (हिंदी विभाग, इग्नू, दिल्ली), मुख्य अतिथि प्रो. लोकेश कुमार गुप्ता (निदेशक, IQUAC, माता सुंदरी महाविद्यालय, दिल्ली) और विशेष अतिथि श्री बरुण कुमार (पूर्व निदेशक, राजभाषा विभाग, लेखक व भाषाविद्) शामिल थे। कार्यक्रम में रामानुजन कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राचार्य प्रो. रसाल सिंह भी उपस्थित रहे।
तीसरे सत्र के वक्ता के रूप में प्रोफेसर जयशंकर बाबू प्रोफेसर हिंदी विभाग पांडिचेरी विश्वविद्यालय,डॉक्टर शिवा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय एवं डॉक्टर सुनीता सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय से उपस्थित रहे, आप सभी ने भारतीय ज्ञान परंपरा के विशिष्ट भारतीय पर वृक्ष को समाहित करने पर प्रमुखता से बल दिया ।
संगोष्ठी के समापन सत्र के मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफेसर वंदना झा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भाषा विभाग की विभागा अध्यक्ष उपस्थित रहीं, कार्यक्रम की अध्यक्षता लक्ष्मीबाई महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर प्रत्यूष वत्सला जी द्वारा की गई ।
अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रोफेसर वंदना जाने विशिष्ट भारतीय दर्शन और उसके जुड़े हुए मौलिक सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हुए विशिष्ट भारतीय संस्कृति वह उसके दर्शन को आत्मसात करने पर जोर दिया जीवन के दिन प्रतिदिन की क्रियो में भाषा व संस्कृति के सहज प्रयोग और आधुनिक युग में डिजिटल संस्कृति के साथ उसके समावेशन की आवश्यकता उनके विचार बिन्दु के मुख्य विषय थे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर प्रत्यूष वत्सला जी ने कहा कि हमें ऐसे राष्ट्रीय संगोष्ठियों के मूल विषयों को शिक्षा केंद्रो के साथ ही साथ सामाजिक गतिविधियों में भी विस्तारित करना चाहिए जिससे कि किसी भी संगोष्ठी के मूल विषय को आम जनमानस तक जोड़ा जा सके ।
समापन सत्र का संचालन डॉक्टर प्रियंका कुमारी व धन्यवाद ज्ञापन डॉ सुनील कुमार मिश्रा द्वारा दिया गया ।
संगोष्ठी के प्रत्येक सत्रों में आए हुए वाक्य का विधिवत सम्मान संगोष्ठी संयोजकों द्वारा सत्रा अनुसार किया गया
इस अवसर पर , श्री रवि शंकर त्रिपाठी जी,प्रोफेसर लता शर्मा प्रोफेसर अलका हनरेजा, प्रो अनिता मल्होत्रा,डॉक्टर प्रमिला डॉ. सुमित कुमार मीना,डा स्वीटी टाम्बरे ,डा मीनाक्षी,डॉ. मुकेश महतो, और डॉ. श्वेतांक शशि पांडे , सहित सभी छात्राओं वी इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में सहयोग देने वाले सभी तकनीकी व शैक्षिक सहयोगियों का आभार व्यक्त करते हुए राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन की घोषणा की गई ।